मूड ठीक करने के लिए बच्चे ले रहे फोन का सहारा- स्कूल से लौटकर राहुल अपने कमरे में चला गया, मन उदास था। शायद किसी ने कुछ कह दिया था इसलिए अपने कमरे में जाकर मोबाइल फ़ोन में वीडियो देखने लगा। बताना चाहते है की राहुल अकेला ऐसा लड़का नहीं है जोकि अपने मूड सही करने के लिए फ़ोन देखने लगता है।
विशेषज्ञ ने कही बड़ी बात
विशेषज्ञ ने बताया की मोबाइल की लत इतनी बेकार हो गयी है की बच्चे मूड ठीक करने के लिए मोबाइल का सहारा लेते रहते है। दावा किया जा रहा था कि लॉक डाउन खुलने के बाद बच्चे धीरे धीरे सुधर जायेंगे। लेकिन अस्पताल में आने वाले मरीजों का आकड़ा वैसा का वैसा ही है और सही होने का नाम नहीं ले रहा है।
ऐसा बताया जा रहा है की बच्चो को मोबाइल फ़ोन पर अपने उम्र के हिसाब से सही सामग्री मिल जा रही है। यही वजह है की घर वालो के मना करने के बाद भी मोबाइल की लत जाने का नाम नहीं ले रही है। मनोवैज्ञानिक ने कहा की बच्चो की उम्र के साथ साथ दिमाग के न्यूरॉन की संरचना भी बदलती है।
aims के डॉक्टर ने बताई अपनी बात
aims के डॉक्टर ने बताया की अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या उतनी ही बनी हुई है। इन बच्चो के ऊपर मोबाइल की लत इतनी ज्यादा हो चुकी है की परिजनों की बात भी नहीं सुन्ना चाहते है। ऐसा बताया जाता है की दिमाग बच्चो को सिगनल देता है की मोबाइल एक मात्र सहारा है मूड ठीक करने के लिए।
धीरे धीरे यह आदत लत में बदल जाती है। बच्चो का जब विकास हो रहा होता है तो उनमे न्यूरॉन बने हुए होते है और इस लत के कारण बच्चो के अंदर निगेटिव प्रभाव पड़ने लगता है। यह अपने उम्र से बढ़कर व्यहवार करने लगते है। बताया जा रहा है की बच्चे बिना फोन के गुजारा भी नहीं कर पाते है।
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