Freddy Movie Review: कार्तिक आर्यन की नयी पेशकश , इस प्यार के पंचनामे में प्रेडिक्टेबल कहानी से हुआ रोमांच का मर्डर – कार्तिक आर्यन की आ रही फ्रेड्डी मूवी को लेकर वह अभी भोत सुर्खियां बटोर रहे हैं और साथ देखने को मिल रहा है की , इस मूवी में कार्तिक आर्यन का किदार उनके किये गए किरदारों से बेहद अलग होने वाला है।
फ्रेडी मूवी रिव्यू फ्रेडी को डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम किया जाता है। फिल्म में कार्तिक आर्यन एक डेंटिस्ट के रोल में हैं। अलाया एफ फीमेल लीड रोल प्ले कर रही हैं। कार्तिक आर्यन ने फिल्म में अपने अभिनय से प्रभावित किया है।
काफी समय से कार्तिक आर्यन की अभिनय क्षमता पर सवाल उठ रहे थे, ऐसे तमाम सवालों का जवाब फ्रेडी हैं। फिल्म के माध्यम से प्यार का पंचनामा करने के लिए जाने जाने वाले अभिनेता ने अपने करियर में एक अलग मोड़ लेते हुए अपने अभिनय गियर को पूरी तरह से बदल दिया है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम होने वाली फ्रेडी एक दिलचस्प थ्रिलर है, लेकिन परफेक्ट नहीं है। इसकी खामियां हैं, लेकिन सबसे बड़ी ताकत कार्तिक हैं।

फ्रेडी को हल्के में मत लेना!
मुंबई में एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे और पले-बढ़े फ्रेडी जिनवाला एक डेंटिस्ट हैं। क्लीनिक पर मरीजों की लाइन लगी रहती है। तीस की दहलीज पर खड़ा, पर अकेला। शादी तो दूर की बात है, आज तक लड़के भी हैं। लड़की सामने आती है तो आत्मविश्वास डगमगा जाता है। जुबान लड़खड़ाने लगती है। घुटनों में कम्पन होता है। इसलिए पांच साल से मैट्रिमोनियल साइट पर प्रोफाइल होने के बावजूद वह सिंगल हैं।
मजबूत किरदार, कमजोर कहानी
शशांक घोष द्वारा निर्देशित फ्रेडी मुख्य रूप से इन दो पात्रों के बीच प्रेम, साज़िश, छल और बदले की कहानी है। लेकिन, कहानी को जिस तरह से दिखाया गया है, वह टुकड़ों में असर छोड़ती है। एक-दो ट्विस्ट को छोड़ दें तो स्क्रीनप्ले बिल्कुल सपाट है। फ्रेडी और कायनाज के बीच सीधा चलता है। यह काफी प्रेडिक्टेबल भी है। जहां सस्पेंस की गुंजाइश है, वहीं लेखन में आलस्य भी है।
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कुछ घटनाक्रम ऐसे हैं जिनसे बेहतरीन सस्पेंस बनाया जा सकता था। उदाहरण के लिए, कायनात की वास्तविकता को प्रकट करने वाला दृश्य फ्रेडी का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है, क्योंकि यहाँ से फ्रेडी और कायनाज के पात्र एक अलग रंग दिखाने लगते हैं, लेकिन इस दृश्य को देखकर कोई झटका नहीं लगता है और यह सिर्फ कथा के प्रवाह में बह जाता है। जाता है।
रुस्तम की मौत की पुलिस जांच को बहुत हल्के ढंग से दिखाया गया है। एक समय ऐसा आता है जब लगता है कि कहानी को अपनी सुविधा के अनुसार आगे बढ़ाने के लिए पटकथा में कथानक गढ़े गए हैं, ताकि लेखक वहां पहुंच जाए जहां फिल्म पहुंचना चाहती है। मतलब पता करके प्रेमी को दूध में मक्खी की तरह फेंक देना और फिर प्रेमी से बदला लेना हिंदी फिल्मों के लिए कोई नई बात नहीं है। फिदा जैसी फिल्मों में यह दिखाया गया है।
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